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असं॑ख्याता स॒हस्रा॑णि॒ ये रु॒द्राऽअधि॒ भूम्या॑म्। तेषा॑ सहस्रयोज॒नेऽव॒ धन्वा॑नि तन्मसि ॥५४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

असं॑ख्या॒तेत्यस॑म्ऽख्याता। स॒हस्रा॑णि। ये। रु॒द्राः। अधि॑। भूम्या॑म्। तेषा॑म्। स॒ह॒स्र॒यो॒ज॒न इति॑ सहस्रऽयोज॒ने। अव॑। धन्वा॑नि। त॒न्म॒सि॒ ॥५४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:16» मन्त्र:54


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्य लोग कैसे उपकार ग्रहण करें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे हम लोग (ये) जो (असंख्याता) संख्यारहित (सहस्राणि) हजारों (रुद्राः) जीवों के सम्बन्धी वा पृथक् प्राणादि वायु (भूम्याम्) पृथिवी (अधि) पर हैं (तेषाम्) उनके सम्बन्ध से (सहस्रयोजने) असंख्य चार कोश के योजनोंवाले देश में (धन्वानि) धनुषों का (अव, तन्मसि) विस्तार करें, वैसे तुम भी विस्तार करो ॥५४ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि प्रतिशरीर में विभाग को प्राप्त हुए पृथिवी के सम्बन्धी असंख्य जीवों और वायुओं को जानें, उनसे उपकार लें और उन के कर्त्तव्य को भी ग्रहण करें ॥५४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यैः कथमुपकारो ग्राह्य इत्युच्यते ॥

अन्वय:

(असंख्याता) संख्यारहितानि (सहस्राणि) (ये) (रुद्राः) सजीवाऽजीवाः प्राणादयो वायवः (अधि) उपरिभावे (भूम्याम्) पृथिव्याम् (तेषाम्) (सहस्रयोजने) सहस्राण्यसंख्यानि चतुःक्रोशपरिमितानि यस्मिन् देशे तस्मिन् (अव) अर्वागर्थे (धन्वानि) धनूंषि (तन्मसि) विस्तारयेम ॥५४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथा वयं ये असंख्याता सहस्राणि रुद्रा भूम्यामधि सन्ति, तेषां सकाशात् सहस्रयोजने धन्वान्यव तन्मसि तथा यूयमपि तनुत ॥५४ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैः प्रतिशरीरं विभक्ता भूमिसम्बन्धिनो जीवा वायवश्च वेद्यास्तैरुपकारो ग्राह्यस्तेषां कर्त्तव्यश्च ॥५४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी असंख्य जीव व वायू यांना जाणावे. त्यांचा उपयोग करून घ्यावा व त्यांच्यासंबंधीच्या कर्तव्याचे भानही ठेवावे.